Friday 30 December 2011

रहें मशरूफ हमेशा, हसरतें जगाने में, 
जाने क्या कमी रह गयी, इश्क निभाने में;

तनहाइयों में रोते रहे रात भर, अक्सर,
दिल फिर भी दुखा उन्हें नींद से जगाने में;

हर नींद, हर ख्वाब उनके नाम कर दिया,
कोई कमी न छोड़ी उन्होंने रुलाने में;

चाहा भी कि याद न आयें वो कभी,
पर जान निकल रही है, उन्हें भुलाने में;

(एक दीदार की हसरत है,
इक आग़ोश की आरज़ू है,
हर लम्हा तरसतें हैं,
नजदीकियों की जुस्तजू है;)

डुबो देना पड़ता है, समंदर-ए-शराब में,
सुकून की हसरतें थी, आज मयखाने में;

खुदा सा इल्म था साकी पर,
खुद परेशां है वो, इतना पिलाने में;

हर आहट पे जाग उठता है "परिंदा" ,
बड़ी मुश्किल आती है,उसे सुलाने में;

1 comment:

  1. subhaaan aallaaahhh........taarriif karne ko labj hi nahi h....!!!!

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