Thursday 5 January 2012

ख़ुशी के लिबास में लिपटी,
बेचैनी संभल रहा था;
जिन गलियों में मौत पसरी हुई थी,
वहीँ ज़िन्दगी तलाश रहा था.

खाकसार से ख्वाब थे मेरे, फिर भी,
तेरे दामन में चाँद तलाश रहा था;

तेरे आग़ोश में इक छाँव देखी थी, अपनी सी,
उन बांहों के दरमियाँ दुनिया तलाश रहा था;

इरादें थे आसमां को झुका लाने के,
ज़र्रो में फँस कर तबाही तलाश रहा था;

कोई कही दूर बैठा हँस रहा था, मेरी बातों पर,
उसका दिल मेरी हँसी के पीछे आंसू तलाश रहा था;

सब को दीया-ए-मज़ार सा दिख रहा था मैं,
और "परिंदा" अपनी हस्ती खुद में तलाश रहा था...

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