Monday 30 January 2012

अपने काँधे पे 
हल्का स्पर्श याद है मुझे,
याद है मुझे 
हर एहसास 
जो तेरी आँखों में
ठहरा देखा था,
याद है 
हर पल 
जिस में मेरे दर्द को 
अपना समझा था तुमने,
याद है 
हर वो शिकायत 
जो तेरे लबों पे आई थी;

और इक लम्हा 
अपने सीने में दबा रखा है,
जब इन आँखों ने
तुझे छुआ था,
कुछ सांसें सहेज रखी हैं 
जिन से तुझे जिया था,
कुछ सपने हैं 
साथ देखे थे कभी, 
और तेरी एक मुस्कान 
जैसे खुदा ने 
तोहफा दिया था..

Monday 9 January 2012

मेरे चाँद के दीवानें बहुत हैं,
उनकी अदाओं के अफ़साने बहुत हैं,
सोचते हैं की चाहना छोड़ दें उन्हें,
पर उन्हें प्यार करने के बहाने बहुत हैं;

चाहत है इस क़दर की अपना अक्स मेरी आँखों में देख लें,
पर उनके शहर में आइनें बहुत हैं;

उन्हें सोच कर दिल रोशनी से भर जाता है,
पर उनके लिए शामियानें बहुत हैं;

वक़्त-बेवक्त परेशां करना, फितरत है उनकी,
उन्हें नहीं पता, हमारे सब्र के पैमानें बहुत हैं;

टटोलते हैं दिल इस तरह, तीर सी निगाहों से,
इश्क के इम्तिहाँ हम पर, आजमाने बहुत हैं;

खुलकर कभी कह नहीं पायेंगे, दिल की बात,
हमारे मेहेरबां ज़नाने बहुत हैं;

आ जायें, कभी वो हमारे आग़ोश में,
"परिंदे" के दिल में आशियाने बहुत हैं..........

Sunday 8 January 2012

भीतर  ही भीतर
कुछ खाये जा रहा है,
अजनबी सा ख्याल
आये जा रहा है,
इक पल की दूरी पर
दोस्त खड़ें हैं,
थामने को;

और ये अकेलापन सताये जा रहा है...

सपनो के भार से
पलकें मुंदने लगी हैं,
ख़ुशियाँ भी अब
दामन चूमने लगी हैं,
पर अब नींद
इन आँखों से निकलने लगी है,
चमकता सफ़ेद अँधेरा
छाये जा रहा है,

पर ये अकेलापन सताये जा रहा है;

कुछ बंदिशें हैं
जो जकड रहीं हैं,
कदमों को मेरे
पकड़ रहीं हैं,
हाथ रीत रहें हैं पल-पल,
फिर भी किस्मत
जाने क्यूँ अकड़ रही है
"परिंदा" भी
वादे निभाए जा रहा है

बस ये अकेलापन सताए जा रहा है.......

Thursday 5 January 2012

ख़ुशी के लिबास में लिपटी,
बेचैनी संभल रहा था;
जिन गलियों में मौत पसरी हुई थी,
वहीँ ज़िन्दगी तलाश रहा था.

खाकसार से ख्वाब थे मेरे, फिर भी,
तेरे दामन में चाँद तलाश रहा था;

तेरे आग़ोश में इक छाँव देखी थी, अपनी सी,
उन बांहों के दरमियाँ दुनिया तलाश रहा था;

इरादें थे आसमां को झुका लाने के,
ज़र्रो में फँस कर तबाही तलाश रहा था;

कोई कही दूर बैठा हँस रहा था, मेरी बातों पर,
उसका दिल मेरी हँसी के पीछे आंसू तलाश रहा था;

सब को दीया-ए-मज़ार सा दिख रहा था मैं,
और "परिंदा" अपनी हस्ती खुद में तलाश रहा था...