Friday 30 December 2011

रहें मशरूफ हमेशा, हसरतें जगाने में, 
जाने क्या कमी रह गयी, इश्क निभाने में;

तनहाइयों में रोते रहे रात भर, अक्सर,
दिल फिर भी दुखा उन्हें नींद से जगाने में;

हर नींद, हर ख्वाब उनके नाम कर दिया,
कोई कमी न छोड़ी उन्होंने रुलाने में;

चाहा भी कि याद न आयें वो कभी,
पर जान निकल रही है, उन्हें भुलाने में;

(एक दीदार की हसरत है,
इक आग़ोश की आरज़ू है,
हर लम्हा तरसतें हैं,
नजदीकियों की जुस्तजू है;)

डुबो देना पड़ता है, समंदर-ए-शराब में,
सुकून की हसरतें थी, आज मयखाने में;

खुदा सा इल्म था साकी पर,
खुद परेशां है वो, इतना पिलाने में;

हर आहट पे जाग उठता है "परिंदा" ,
बड़ी मुश्किल आती है,उसे सुलाने में;

Monday 26 December 2011

शांत मस्तिष्क की
दीवारों पर
मेरे ख्याल
जम से गयें हैं,
तुम जो नहीं हो ना
आजकल
उन्हें सँभालने को;
स्वयं ही रखता हूँ
उनका ध्यान,
यदा-कदा कुरेद देता हूँ;
हर परत के नीचे तुम्हारे निशाँ
छुपे मिलते हैं,
ज्यादा ही खुरच दूं
तो
तुम्हारी महक से
दिल बहक जाता है;
मैं कवि नहीं हूँ,
और न ही कभी था;
सिर्फ तुम्हारे लिए
कुछ लिख देता था,
आज तुम नहीं हो
पास मेरे,
लिखना चाहूं भी तो
क्या लिखूं;
शब्दों का हुनर नहीं रहा
 मेरे पास कभी
अब कुछ यादें हैं,
स्याही में पिरो दूंगा....

Sunday 25 December 2011

आपके शहर में बेचैनी क्यूँ है,
हर अल्फाज़ में उदासी क्यूँ हैं,
बरसतें तो होंगे बादल यहाँ भी,
फिर हर  कतरा ज़मीन प्यासी क्यूँ हैं;

अश्क भिगो रहे मंज़र को हर लम्हा,
फिर भी ये मुस्कान तराशी क्यूँ हैं;

अंजुमन में फूल मुरझा रहे हैं,
यहाँ हर बागबान आलसी क्यूँ हैं;

उड़ना तो चाहता हूँ मैं, आसमां में बेफिकर,
पर दुनिया के रिवाज़ इतने बासी क्यूँ हैं;

बदल तो लूं अपनी आदतों को मैं भी,
पर इनकी पकड़ इतनी खासी क्यूँ हैं;

"परिंदा" हो रहा है परेशान, अकेले में,
आपकी निगाहों में बदमाशी क्यूँ  है.........
मेरे अँधेरे ख्यालों में,
वो सविता लगती है;
मैं कुछ भी लिख दूं,
मेरी माँ को कविता लगती है...
मैंने कुछ भी सोच लिया,
उसका आसमां बन गया,
मेरा हर ख्वाब उसका जहां बन गया...
नादान है वो,
और कभी नासमझ भी,
की कितना दर्द रखती है
 वो मेरे लिए
उसे नहीं पता
मेरे पास सिर्फ दर्द है
माँ तेरे लिए
मेरी हर बात पे उसे गुस्सा नहीं आता
पर वो जताती है
इंसानों की भीड़ में
रहने लायक बनती है
पता है उसे
कभी धोखा नहीं दूंगा
फिर भी पूरा विश्वास
नहीं कर  पाती है....
हर वक़्त
उदास और अकेले ख्यालो में
खोया रहता हूँ...
इन्ही अँधेरे ख्यालो में
वो सविता लगती है...
मैं कुछ भी लिख दूं,
मेरी माँ को कविता लगती है...


savita stands for surya (the Sun)