Sunday 25 December 2011

आपके शहर में बेचैनी क्यूँ है,
हर अल्फाज़ में उदासी क्यूँ हैं,
बरसतें तो होंगे बादल यहाँ भी,
फिर हर  कतरा ज़मीन प्यासी क्यूँ हैं;

अश्क भिगो रहे मंज़र को हर लम्हा,
फिर भी ये मुस्कान तराशी क्यूँ हैं;

अंजुमन में फूल मुरझा रहे हैं,
यहाँ हर बागबान आलसी क्यूँ हैं;

उड़ना तो चाहता हूँ मैं, आसमां में बेफिकर,
पर दुनिया के रिवाज़ इतने बासी क्यूँ हैं;

बदल तो लूं अपनी आदतों को मैं भी,
पर इनकी पकड़ इतनी खासी क्यूँ हैं;

"परिंदा" हो रहा है परेशान, अकेले में,
आपकी निगाहों में बदमाशी क्यूँ  है.........

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