Thursday 22 March 2012

महसो-सात

उनसे कुछ ना बता पाने की बेबसी है,
नहीं तो, हर क़तरा-ए-इश्क उनकी कायनात में है;

बे-शर्म दिल कर बैठा, कितने इज़हार-ए-मोहब्बत,
अब जाना, असली मज़ा तो उनसे इश्क के सबात में है;

आलम बेख़ुदी का इस कदर है, अब तो हम पर,
हिद्दत होती है माहताब से, और आफ़ताब रात में है;

ख्वाहिश नहीं है मौत की, उनके बिना भी, अब तो,
मेरी ज़िन्दगी तो अब उनके अहसानात में है;

उनकी कैफ़ियत क्या ही बताएं आपको,
वो तो निहा हमारे ज़ज्बात में है;

हंसी तो आएगी ही आपको हर लम्हा,
आपका दिल तो बस तहक़ीक़ात में है;

"परिंदा" नहीं लेगा इम्तिहाँ, कभी, अपने इश्क का,
उनसे अहद-ए-वफ़ा तो हर बात में है....





महसो-सात = feelings सबात = स्थायित्व, हिद्दत = गर्मी, माहताब = चाँद, आफ़ताब = सूरज, कैफियत = स्तिथि, निहा = confined, अहद-ए-वफ़ा = प्रेम की प्रतिज्ञा

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