Sunday 11 March 2012

अनछुए सवाल

दिन नहीं बीत रहा तेरे बिना, बिताऊँ कैसे;
ख्यालों में तेरे खोया हूँ, बताऊँ कैसे;
कुछ भी लिख देता था, तेरी तारीफ पाने को,
फिर कुछ लिखा है आज, सुनाऊँ कैसे;

अश्क़ सजातें थे नज्मों को मेरी, हमेशा,
इन सूखी आँखों को आज, रुलाऊँ कैसे;

तेरी यादों की बारिश, भिगो रही है ख्यालों को मेरे,
ख़ुशी की मुफ़लिसी को आज, मिटाऊँ कैसे;

तुझसे मोहब्बत है या मेरा पागलपन था,
मेरे नादान दिल को आज, समझाऊँ कैसे;

तेरे शबाब का नशा है, अब तक, हर धड़कन में,
हर धड़कन को शराब से आज, जलाऊँ कैसे;

तेरे लबों को छूने से लग जाती थी आग साँसों में,
उस दबी चिंगारी को आज, सुलगाऊँ कैसे;

चैन मिलता था तेरी आँखों में झाँक लेने से,
डरते हुए दिल को आज, सहलाऊँ कैसे;

तुझे चूमने से क़ायनात पा लेता था मैं,
नजदीकियों के हर लम्हे को आज, भुलाऊं कैसे;

तू पास है, सोचकर, हर फ़िक्र उड़ा देता था मैं,
जुदाई के मनहूस लम्हे को आज, बिताऊं कैसे;

मुस्कान आती थी, तेरे दीदार की हसरत से ही,
रो रहा है "परिंदा" आज, हसाऊँ कैसे...

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