Monday 9 January 2012

मेरे चाँद के दीवानें बहुत हैं,
उनकी अदाओं के अफ़साने बहुत हैं,
सोचते हैं की चाहना छोड़ दें उन्हें,
पर उन्हें प्यार करने के बहाने बहुत हैं;

चाहत है इस क़दर की अपना अक्स मेरी आँखों में देख लें,
पर उनके शहर में आइनें बहुत हैं;

उन्हें सोच कर दिल रोशनी से भर जाता है,
पर उनके लिए शामियानें बहुत हैं;

वक़्त-बेवक्त परेशां करना, फितरत है उनकी,
उन्हें नहीं पता, हमारे सब्र के पैमानें बहुत हैं;

टटोलते हैं दिल इस तरह, तीर सी निगाहों से,
इश्क के इम्तिहाँ हम पर, आजमाने बहुत हैं;

खुलकर कभी कह नहीं पायेंगे, दिल की बात,
हमारे मेहेरबां ज़नाने बहुत हैं;

आ जायें, कभी वो हमारे आग़ोश में,
"परिंदे" के दिल में आशियाने बहुत हैं..........

2 comments: