भीतर ही भीतर
कुछ खाये जा रहा है,
अजनबी सा ख्याल
आये जा रहा है,
इक पल की दूरी पर
दोस्त खड़ें हैं,
थामने को;
और ये अकेलापन सताये जा रहा है...
सपनो के भार से
पलकें मुंदने लगी हैं,
ख़ुशियाँ भी अब
दामन चूमने लगी हैं,
पर अब नींद
इन आँखों से निकलने लगी है,
चमकता सफ़ेद अँधेरा
छाये जा रहा है,
पर ये अकेलापन सताये जा रहा है;
कुछ बंदिशें हैं
जो जकड रहीं हैं,
कदमों को मेरे
पकड़ रहीं हैं,
हाथ रीत रहें हैं पल-पल,
फिर भी किस्मत
जाने क्यूँ अकड़ रही है
"परिंदा" भी
वादे निभाए जा रहा है
बस ये अकेलापन सताए जा रहा है.......
कुछ खाये जा रहा है,
अजनबी सा ख्याल
आये जा रहा है,
इक पल की दूरी पर
दोस्त खड़ें हैं,
थामने को;
और ये अकेलापन सताये जा रहा है...
सपनो के भार से
पलकें मुंदने लगी हैं,
ख़ुशियाँ भी अब
दामन चूमने लगी हैं,
पर अब नींद
इन आँखों से निकलने लगी है,
चमकता सफ़ेद अँधेरा
छाये जा रहा है,
पर ये अकेलापन सताये जा रहा है;
कुछ बंदिशें हैं
जो जकड रहीं हैं,
कदमों को मेरे
पकड़ रहीं हैं,
हाथ रीत रहें हैं पल-पल,
फिर भी किस्मत
जाने क्यूँ अकड़ रही है
"परिंदा" भी
वादे निभाए जा रहा है
बस ये अकेलापन सताए जा रहा है.......
Bahut hi Umda..
ReplyDeletethis is excellent stuff...
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